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कुण्डलियाँ

kavita
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“गाँधी की लाठी से”
अन्ना जी हुन्करिये एक बार फिर और,
अभी चल रहा देश में बड़ा कठिन ही दौर |
बड़ा कठिन ही दौर लड़ाई अभी शेष है
परदे के पीछे से कोई धवल वेश है |
कह गुंजन हो गए इकट्ठे सारे धन्ना
गाँधी की लाठी से धुने उन्हें फिर अन्ना |

“स्वचालित आरी”
आरी-नारी में नहीं अंतर बहुत महान,
एक चलाने पर चले दूजा बिना चलान |
दूजा बिना चलान घाव क्षण में दे गहरा
पास-पड़ोसन बात करे उस पर भी पहरा |
कह गुंजन जो भीमकाय पति पर भी भारी
वही आज कहलाती यहाँ स्वचालित आरी |

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