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वासंती मौसम लिखे अंग -अंग पर छंद

kavita
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बार -बार मन में उठे उमंग की तरंग
फागुनी बयार मद भरे अंग- अंग है ,
रग- रग में मलय पवन भरे सुवास
आज पग-पग पर बिछा राग- रंग है |
कंचुकी की डोरी कस दी भौजी ने इतनी क़ि
तंग हुए वसन से गोरी तंग-तंग है |

| बिखरे प्यार के रंग | |
ऋतुराज चढ़ गया यौवन- सोपान पर
मुखरित हो गया धरा का अंग- अंग है ,
रंग-रंग के कुसुम खिले वन- उपवन
अलि- आवली फूलों के डोलरही संग है |
आन- बान ,ताम-झाम निरख के ठाम- ठाम
निर्मोही आज तो शिशिर हुआ दंग है |
गोरी की आखों में कई बिखरे प्यार के रंग
दौड़ने औचक लगे मन का तुरंग है
| अंग- अंग पर छंद |
वासंती मौसम लिखे अंग- अंग पर छंद
दसों- दिशाओं में फैल गयी आज गंध है ,
रग-रग से है अनुराग- धार बह रही
कामिनी के मुख मुस्कान मंद- मंद है |
क्षणे- क्षण मन में मिलन-घन झर रहा
धीरज का टूट रहा अब तटबंध है ,
मदिर नयन से हुलक रहे रति- देव
गोरी के अन्तःपुर ऐसा मचा द्वन्द है |

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