kavita
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गुलमुहर किससे कहे
अपनी व्यथा !
लोग ललचाई
नज़र से देखते ,
फब्तियाँ कस-कस
ह्रदय को बेधते |
दर्द में डूबी हुई
उसकी कथा !
गुलमुहर किससे कहे
अपनी व्यथा !!
तामसी नित वृत्तियाँ
गहरा रहीं ,
निराशाएँ हो प्रवल
अब छा रहीं |
प्रश्न लंबा ‘और ‘ एवं
में ‘तथा’ !
गुलमुहर किससे कहे
अपनी व्यथा !!
गरलमय अब हो गया
परिवेश है ,
अमन का दिखता नहीं
उन्मेष है |
नभ- कुसुम की कल्पना
मन में यथा !
गुलमुहर किससे कहे
अपनी व्यथा !!
आचार्य विजय ” गुंजन ”
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