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मनोरम सृष्टि का आँचल

kavita
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निमंत्रण नेह का देने पुनः है आ गया सावन !
धरा गढ़ने लगी नव अंकुरण का छंद अब पावन !!
किसी के नयन का काजल चुराकर
गगन में बादल,
निमिष में छा गया बनकर मनोरम
सृष्टि का आँचल |

घुमाता मेघ को चारों तरफ है वायु बन वाहन !
निमंत्रण नेह का देने पुनः है आ गया सावन !!

दमककर दामिनी घनघोर तम को
चीरकर पल में,
दिखाती नील नभ- आनन सरोवर के
भरे जल में |

कि मन कहता चलो कर लें सुभर में आज अवगाहन !
निमंत्रण नेह का देने पुनः है आ गया सावन !!

ऋचाएँ बाँचते दादुर
सदा समवेत ही सुर में,
करें आनंद का वर्षण अलौकिक
जगति के उर में |

पुरोहित बन रहे कर इन्द्र का क्रमवार आवाहन !
निमंत्रण नेह का देने पुनः है आ गया सावन !!

– आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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