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!! हिन्दी माथे की बिंदी है !!

kavita
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Meena Kumari अपने ही घर में है देखो रानी पड़ी उदास रे !
शायद कोई सौतन घर में बन बैठी है ख़ास रे !!

ऊँचा पद ऊँचा सिंहासन मान उसे सम्मान मिले
इसके हिस्से में राजा से समय-समय अनुदान मिले

लौंड़ी – नाफ़र – नौकर -चाकर एक नहीं भी पास रे !
अपने ही घर में है………………………………………..!!

दाख-मुनक्का- गरी-छुहाड़ा किसमिस है जलपान में
लंच – ब्रेक मैडम का होता होटल आलीशान में

रानी की किस्मत तो देखो सातों दिन उपवास रे !
अपने ही घर में है ………………………………….!!

नाज़ और नखरे – तिल्ले सबकुछ उसके सर आँखों पर
रानी के अरमान तोड़ते तड़प -तड़प दम राखों पर

रानी की सुन्दरता राजा को ना आती रास रे !
अपने ही घर में है ……………………………..!!

सौ कहार की डोली रहती है मैडम की खिदमत में
दुनिया भर की सारी दौलत है मैडम की किस्मत में

डोली के पीछे मैडम की लव -लश्कर भी साथ रे !
अपने ही घर में है ………………………………….!!

रानी हिन्दी माथे की बिंदी है – हिंद्स्तान है
श्रद्धा की देवी है भारतवासी की यह आन है

इसकी रग-रग – रोम -रोम में सरस्वती का बास रे !
अपने ही घर में है देखो रानी पड़ी उदास रे !!
शायद कोई सौतन घर में बन बैठी है ख़ास रे !!!

– आचार्य विजय गुंजन

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