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कुम्भकर्ण है फिर से जागा

kavita
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खिड़की बंद
बंद
दरवाजे !
खर-दूषण
चहुओर
विराजे !!
रावण विष का बीज
बो रहा ,
यहाँ विभीषण मौन
रो रहा ,
दुनिया झुक कर
उसे
नवाजे !
खिड़की बंद
बंद
दरवाजे !!
अहिरावन आ गया
अभागा ,
कुम्भकर्ण है फिर से
जागा ,

असुरी सेना
पल -पल
साजे !
खिड़की बंद
बंद
दरवाजे !!
गली- गली
ससुरी
बौराई,
यहाँ अविद्या
सब पर
छाई ,
सरस्वती नित
बर्तन
माँजे !
खिड़की बंद
बंद
दरवाजे !!
आचार्य विजय गुंजन

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