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” मंगल दीप जले “

kavita
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Indian lady lighitng Diya अन्धकार को हरे और यह
मंगल दीप जले !
रखे हथेली पर थाली में
अक्षत-चन्दन धूप ,
दमक रहा है किसी कामिनी का
आँगन में रूप |
कुंदन से मन में सजनी के-
पावन प्रीत पले !
अंधकार को………..!!
छवि आँखों में पल-प्रतिपल
चमके बनकर मोती ,
अरमानों के बीज अनगिनत
मन में है बोती |
मृगमरीचिका बिम्ब आगमन का –
बन उभर छले !
अन्धकार को ……..!!
हरसिंगार बन हँसी फूटती
लौट रहा यौवन ,
फूट कामनाओं के लड्डू
बिखरे सौ-सौ मन
प्रियतम की अनुपस्थिति- वेला
हिय को आज खले !
अंधकार को …!!
अंधकार को हर प्रकाश
फैलायेगा यह दीप,
बरसायेगा रिद्धि-सिद्धि के
घर-आँगन में सीप
अभी सजानी दीप-पंक्तियाँ
जल्दी शाम ढले !
अन्धकार को हरे और यह
मंगल दीप जले !!
आचार्य विजय ‘गुंजन ‘

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