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” कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं लड़कियाँ “

kavita
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784801991 कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं
लड़कियाँ !
गाँव – खेत – खलिहान
शहर – चौक – चौराहे
सभी जगह असुरक्षित हैं
लड़कियाँ
ऑटों – बसों और ट्रेनों में
आसान नहीं है
इनका सफर .
स्कूलों – कालेजों और दफ्तरों में
घूरतीं निगाहें करती रहती हैं
इनकी प्रतीक्षा .
सभी जगह असहज हैं
लड़कियाँ !
संवेदनशून्य जंगली
इन भूखे भेड़ियों के भय
सदैव उन्हें करते रहते हैं
आक्रान्त
अन्दर -बाहर कहीं भी
मिल जाते हैं
ये पाशविक वृत्ति के
वहशी नरपिशाच .
अपने – पराये
रिश्ते – नाते
इन सबके बीच भी
असहाय और बेवश हैं
लड़कियाँ
बाहर तो बाहर
आज अपने घरों में भी
असुरक्षित हैं
लड़कियाँ !
आचार्य विजय ” गुंजन “

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