kavita
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आ गया श्रृंगार का मौसम !
फिर धरा सजने लगी ऐसे
अनकही कुछ बात हो जैसे
आ गया फिर प्यार का मौसम !
फिर खिले टटके सुनहले रंग,
हो गए सुरभित अवनि के अंग |
आ गया गुंजार का मौसम !
सिलवटों में यों पड़े कुछ बल ,
ह्रृदय में होने लगी हलचल !
अकथ के इज़हार का मौसम !
वीथिका में उठी आज उमंग ,
कौन है जिसके न संग अनंग |
आ गया उपहार का मौसम !
सुगढ़ सी लगने लगी छाया,
मधुमास ने कुछ गीत यों गया |
आ गया मनुहार का मौसम !
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