kavita
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रे शिखंडियो ! मौन तोड़ अब
कुछ तो आज करो !
क्रूर – नीच पाकिस्तानी है नंगा नाच रहा
पग-पग पर है आज मौत की आयत बाँच रहा
लड़ो नहीं तो चुल्लू भर
पानी में डूब मरो ! रे शिखंडियो ……
क्या है तेरी मजबूरी ये हम भी जान रहे
छुद्र स्वार्थवश बेच देश के तुम अभिमान रहे
जन-मन की भावना समझकर
आगे आज बढ़ो ! रे शिखंडियो ………..
उधर चीन आँखे तरेंरकर तुमको घुड़क रहा
और इधर तू दुम सुट्काकर बिल में दुबक रहा
कायरता को तजो और
कर में गांडीव धरो ! रे शिखंडियो ……….
बाह्य शत्रु से खतरनाक अन्दर के काले लोग
हंस बने ये कंस लगाते हैं मोती के भोग
कहाँ छुपे हो कृष्ण ! प्रजा का
आकर कष्ट हरो ! रे शिखंडियो …………..
नीच – भ्रष्ट – शोषक बनकर नक्सल को जन्म दिए
जर- ज़मीन – वन से तुमने उनको बेदखल किये
कम से कम अपनों की लाशों पर
मत अब गणित बरो ! रे शिखंडियो ………..!!
–आचार्य विजय गुंजन (५\५\१३)
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