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चुटीली कुण्डलिया

kavita
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एक
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” जनता दल यू ” ने भरी ऊँची आज उड़ान ,
राजनीति के व्योम में ताने तीर- कमान !
ताने- तीर कमान कमल- दल को भेदेंगे
मंडराते भँवरों को उड़ा- उड़ा खेदेंगे !
कह गुंजन जाकर “मनेर ” मानेंगे मनता
देख- देख मन ही मन मुस्कायेगी जनता !

दो
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मनमोहन के फाँस में फँसे आज नीतीश ,
चीख- चीख कर उगलते मोदी मन की खीस !
मोदी मन की खीस स्वयं को तौल रहे हैं
अन्दर ही अन्दर गुस्से से खौल रहे हैं !
कह गुंजन छाया सिर पर कैसा सम्मोहन
मन ही मन हैं मुस्की मार रहे मनमोहन !

तीन
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धोखा मिला बिहार में , राजनाथ बेचैन ,
नींद उड़ गई नैन की काटे कटे न रैन !
काटे कटे न रैन “घात ” की काट खोजते ,
चूक हुई क्या , मंथन कर- कर मन टटोलते !
कह गुंजन कवि इंद्रजाल था वह पनशोखा,
ऐसे में खाना ही था आँखों को धोखा !

चार
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लालू जी हैं सो गए डाल कान में तेल ,
लड़ो-मरो काटो-कटो मुझे देखना खेल !
मुझे देखना खेल चले थे दोस्त बनाने ,
गिरे धराशाई होकर चित चारों खाने ,
कह गुंजन बनते फिरते थे बडका चालू ,
कुछ भी कर लो टस से मस न हिलेगा लालू !

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