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तन में मलय अनिल की खुशबू

kavita
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तुम भी प्यासी मैं भी प्यासा
प्यासा पूरा अम्बर है !
उतर रहा अब हर सीने में
नयन कोर बन खंजर है !!

वयःसंधि पर मुखर मोहिनी
निखर हुई अलवेली है ,
झुके-झुके मद भरे नयन की
भाषा बनी पहेली है |

चंचल चितवन की गहराई
मानों सात समुन्दर है !
तुम भी ………..!!

धीरे-धीरे खोल रहा है
मन का कोई अवगुंठन
सोलह सावन नहा-नहा कर
देह हो गई है कुंदन |

अभी-अभी फूटा गिरि के अंतर से नूतन निर्झर है !
तुम भी प्यासी मैं भी प्यासा, प्यासा पूरा अम्बर है !!

तन में मलय अनिल की खुशबू
मन तेरा है वृन्दावन
बहकाता भँवरे के मन को
रह-रहकर है मस्त पवन |

ऊसर उर का कोना-कोना हुआ आज फिर उर्वर है !
तुम भी प्यासी मैं भी प्यासा प्यासा पूरा अम्बर !!

– आचार्य विजय ” गुंजन “

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