kavita
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मन में रीतापन भरता है
यह उदास दिन !
पता नहीं क्या-क्या होता है
अंदर-अंदर,
अन्यास भावों के उठते
सात समुन्दर |
हो जाता तब पलभर में ही
ख़ास-ख़ास दिन ! मन में रीतापन ………
चिंतन-पट जब धीरे-धीरे
लगता खुलने ,
स्वयं कल्पनाओं की लगती
साँकल हिलने |
तब लगता है कितना सुन्दर
पास-पास दिन ! मन में रीतापन …………….
कई दूधिये रंग फूल के
तरने लगते ,
मन में अनगिन कोमल भाव
सँवरने लगते |
पसर आँख में जाता खिलकर
काँस-काँस दिन !
मन में रीतापन भरता है
यह उदास दिन !!
आचार्य विजय ” गुंजन “
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