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प्रतीक्षा

kavita
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कविवर प्रवीर ” प्रयास ” के आठवें अङ्क की प्राप्ति की प्रतीक्षा में बेचैन थे | यथा समय- सीमा के अतिक्रमण का आज ग्यारहवाँ दिन था | अब अपने मन की उत्कंठा और कौतुहल को दबा पाना उनके वश की बात नहीं थी , फलतः उन्हों ने सम्पादक जी को ख़त लिखा- आदरणीय श्रीमान् सम्पादक जी, ‘ प्रयास ‘ के आठवें अङ्क की प्रतीक्षा में आँखें पथरा गईं , यथा समय-सीमा को पार हुए आज ग्यारह दिन बीत गए पर अङ्क अबतक हस्तगत न हुआ | क्या उक्त अङ्क अभी प्रेस में है या फिर विलम्ब से छपने के कारण ऐसा हुआ ?
वस्तुतः बात यह थी कि प्रयास के सातवें अङ्क में प्रथम पृष्ठ पर ही ” आगामी अङ्क के आकर्षण ” शीर्षक के अंतर्गत आनेवाली अन्य सामग्रियों के साथ-साथ उनकी कविता का भी ज़िक्र था |
तकरीबन आठ- नौ दिनों के बाद कविवर ‘ प्रवीर ‘के नाम सम्पादक जी का पत्र आया — महाशय , उक्त अङ्क तो सदैव की भाँति अपने निश्चित समय पर छपकर प्रेस से आ गया था और यथा-समय आप को प्रेषित किया जा चुका है |धैर्य रखें अङ्क अब पहुंचता ही होगा | डाक की गड़बड़ी की वज़ह से कभी-कभी ऐसा हो जाता है | कविवर प्रवीर को सम्पादक के इस पत्र से थोड़ा संतोष हुआ | एक के बाद दो और दो के बाद तीन दिनों की तरह आगे आनेवाले कई दिन बीत गए | प्रतीक्षा की घड़ी लम्बी हुई सो होती ही चली गई पर वह अङ्क उन्हें हस्तगत न हो सका , अकस्मात् एक दिन राशन खरीदने के क्रम में उन्हें बनिये की दूकान पर ‘ प्रयास ‘ का आवरण पृष्ठ दिखा | बनिया झटाझट उसके अंदर के पृष्ठों को फाड़-फाड़कर अपने ग्राहकों के लिए उसमें मसालों की पुड़िया बाँध रहा था |बेचारे ‘प्रवीर ‘ जी यह सब देख सन्न और अबाक थे |पत्रिका के अंदर के तकरीवन बीस-पच्चीस पृष्ठों का फटना अभी शेष था | उन्हों ने तपाक से हाथ में उठाकर शेष पन्नों को उलट – पुलटकर अपनी कविता खोजने लगे पर उन्हें निराशा हाथ लगी | यह समझते उन्हें देर न लगी कि उनकी कविता के अक्षर-अक्षर कहीं किसी के रसोईं घर में जीरा -गोलकी या और किसी अन्य मसाले की गंध से सुवासित हो रहे होंगे | कविवर ‘ प्रवीर ‘के पूछने पर बनिये ने बताया —- श्रीमान् ! यहीं , हमारे बगल में पोस्टमैन साहब का डेरा है | भगवान् बेचारे का भला करें | हरेक माह बेचारे पोस्टमैन साहब इस प्रकार की पंद्रह-बीस पत्रिकाएँ हमारे दूकान पर छोड़ जाते हैं और इसके एबज में हम उन्हें कुछ पैसे दे दिया करते हैं !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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