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कहता हूँ मैं बात पुरानी |
सुनो बालको ! एक कहानी !!
एक राज्य था बहुत बड़ा सा
दूर -दूर तक वन फैला था ,
हरियाली चहुँ ओर भरी थी
घर-घर धन-सम्पदा पड़ी थी |
शनै – शनै सूबे की जनता
करने लगी सदा मनमानी
सुनो बालको, एक कहानी !
कटने लगे वृक्ष थे जितने
हरियालियाँ लगीं सब मिटने
सूना पड़ा चहकता जंगल
जहाँ कभी था होता मंगल |
वर्षा रानी हुई रोगिणी मौसम है अब पानी -पानी !
सुनो बालको, एक कहानी !!
राजा था ऐय्याशी बिलकुल
चिंता नहीं तनिक थी उसको
रहता सदा नशे में पागल
कहता क्या ले जाना मुझको ?
यही सोचकर रख- रखाव में
करता हरदम आना – कानी !
सुनो बालको ,एक कहानी !!
रुका बादलों का नित नर्तन
रुका साथ ही जल का वर्षण
त्राहिमाम् मच गया धारा पर
दुर्लभ हुआ अन्न का दर्शन
सूखे ताल -तलइया -पनघट
दुखद हो गई कथा सुहानी !
सुनो बालको ,एक कहानी !!
सूख गए पशुओं के चारे
लगे तड़पने बछड़े प्यारे
दुर्दिन ने घर- घर को घेरा
सबके सब हैं हारे -हारे
राजा पड़ा फेर में बिलकुल
निकल गई सारी मनमानी !
सुनो बालको एक कहानी !!
फिर उसने ऐलान कराया
और सबों को खूब डराया
अगर वृक्ष को कोई काटे
सजा बीस वर्षों के काटे
जमकर उस दिन से जंगल की
होने लगी पुनः निगरानी !
सुनो बालको एक कहानी !!
नन्हें -नन्हें वृक्ष अनोखे
गए लगाए थे जो चोखे
बढ़ नभ को छूने की खातिर
गट -गटागट जल को सोखे
छँटने लगे दुखों के बादल
भूल गए सब व्यथा पुरानी!
सुनो बालको , एक कहानी !!
लगा मानसून फिर से आने
और लगे बादल मंडराने
वातावरण हो गया संतुलित
बिजली लगी देह चमकाने
पुनः झूमकर लगी बरसने
पुलकित मन से वर्षा रानी !
सुनो बालको , एक कहानी !!
आचार्य विजय ” गुंजन ”
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