kavita
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समस्त ऊंचाइयों का उत्कर्ष
जहाँ हो जाता है विलीन
दृष्टि से दूर
कल्पना से परे,
क्या सोचा है कभी
क्या होता होगा वहाँ
उसके बाद ?
मैं ने तो सोचा
और चुप हो गया
क्यों कि हार गई बुद्धि
और शिथिल पड़ गया चिंतन .
इस होने और न होने के बीच
उलझा रहा मेरा मन
जैसे नीव से चल
अपनी यात्रा का प्रारम्भ कर
दीवार की बौनी ऊंचाई
छत तक जाकर
हो जाती है सीमित
क्या इसी तरह होता होगा वहाँ
उस शून्य में
समस्त ऊंचाइयों के
उत्कर्ष की छत ?
कुछ इसी तरह अटपटे -व्यर्थ
और बेढंगे
रह जाते हैं शेष
कई अनुत्तरित प्रश्न…… ?
आचार्य विजय ” गुंजन “
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