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” बिम्ब टटके कई गीत में भर लिए ” कविता- ( कांटेस्ट )

kavita
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नींद कच्ची अधूरी नयन में भरे अड़चनों से झगड़ते रहे रातभर !
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बढ़ चले फिर रुके रुक लगे सोंचने
ठोकरों ने बहुत बार झटके दिए,
पर घना धुंध का आवरण जब छँटा
बिम्ब टटके कई गीत में भर लिए |
=
कल्पना के अतल सिंधु में डूबकर छंद पर छंद गढ़ते रहे रातभर !
नींद कच्ची अधूरी नयन में भरे अड़चनों से झगड़ते रहे रातभर !!

=
अर्थ टूटे कई भाव छितरा गए शब्द के जाल में
मन उलझता रहा ,
चित्र कितने बने औ’ मिटे पर मगर भावना का
अमल स्रोत बहता रहा |
=
अनगिनत चिंतनों की जटिल सीढ़ियां बिन रुके दौड़ चढ़ते रहे रातभर !
नींद कच्ची अधूरी नयन में भरे अड़चनों से झगड़ते रहे रातभर !!
=
कब गए छूट कब राह पर आ गए कब मिलीं
भाव से शब्द की शक्तियाँ,
साधना-गंध से कब सुगन्धित हुईं सिद्ध-संपन्न ,
इस गीत की पंक्तियाँ |=
=
मन रमा इस तरह छंद के बंध में गुन ऋचा टेक पढ़ते रहे रात भर !
नींद कच्ची अधूरी नयन में भरे अड़चनों से झगड़ते रहे रातभर ! !
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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