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” नूर में ज्यों नहाई हुई चांदनी “

kavita
kavita
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beautiful-indian-women-painting-art आप का रूप ज्यों चांदनी की चमक दामिनी की दमक से भरे अंग हैं !
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दूध से यों धुली देह कुन्दन लगे
नूर में ज्यों नहाई हुई चांदनी
मद चुए मदभरे नैन से अनवरत
मुग्ध मुग्धा बनी लग रही कामिनी
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सृष्टि-करतार ने निज सृजन के समय आप में भर दिए नव कई रंग हैं !
आप का रूप ज्यों चांदनी की चमक दामिनी की दमक से भरे अंग हैं !!
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ओष्ठपुट बंद यों ज्यों कमल को किसी
सूर्य की है प्रतीक्षा मनः प्राण से
कौन जिसके ह्रदय की कली प्रस्फुटित
हो रही आप की मंद मुस्कान से
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नर्म बाहें बदन मरमरी सुर्ख लव आप की हर अदा के अलग ढंग हैं !
आप का रूप ज्यों चांदनी की चमक दामिनी की दमक से भरे अंग हैं !!
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आप के पीतवर्णी मृदुल कर-तलों में
कलाएँ कुलाँचें सदा भर रहीं
काल के पृष्ठ पर किस नवाध्याय का
तर्जनी के सहारे सृजन कर रहीं
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आज मन्मथ मदी से मधुर वृत्तियाँ रागिनी की यहाँ कर रहीं जंग हैं !
आप का रूप ज्यों चांदनी की चमक दामिनी की दमक से भरे अंग हैं !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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