Menu
blogid : 9493 postid : 695008

” दांव पर लग गई आजतक की उमर “

kavita
kavita
  • 66 Posts
  • 1620 Comments

जागता ही रहा चाँदनी के लिए रात भर चाँद घन में छुपा ही रहा !
=
भावनारण्य में मन भरमता रहा
भाव जाने न कितने तिरोहित हुए ,
बादलों ने बदल आचरण निज दिए
और छद्मोन्मेषी पुरोहित हुए |
=
दे गया भ्रम पुनः कर गया विभ्रमित चित्त फिर भी न विचलित हुआ सब सहा !
जागता ही रहा चांदनी के लिए रात भर चाँद घन में छुपा ही रहा ! !
=
आज अवकाश आकाश में ना रहा
ग्रह-उपग्रह सभी लड़खड़ाने लगे ,
घोर गर्जन गरज घन किये इस तरह
सृष्टि के चर-अचर थरथराने लगे |
=
वात वातायनों से बहक वेग से कल्पना-गंध को अब दिया ही बहा !
जागता ही रहा चांदनी के लिए रात भर चाँद घन में छुपा ही रहा ! !
=
भाव आराधना-साधना के सभी
भंग होके पृथक दूर मुझसे हुए ,
दांव पर लग गई आजतक की उमर
हर कदम दर कदम रोज हारे जुए |
=
ज़िन्दगी कट गई इस तरुण उम्र में वेदना की नदी में नहा ही नहा !
जागता ही रहा चांदनी के लिए रात भर चाँद घन में छुपा ही रहा ! !
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply