kavita
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बहुत दिनों के बाद याद फिर तेरी आई है !
स्मृतियों ने आकर चुपके से रची सगाई है !!
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बीते पल वक – पंक्ति सरीखे
नभ से उतर रहे ,
मन के वातायन से अंतस –
पट पर पसर रहे |
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वर्षों से सूखी घाटी फिर अब लहराई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर तेरी आई है !!
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सुधियों की बारात, बिना –
परिछन के लौट रही,
वहीं धरी की धरी समूची
बातें जो न कही |
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अभी कहानी बाकी जो अबतक न सुनाई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर तेरी आई है !!
=
एकाकीपन में तेरा जब
चित्र उभर आता ,
वर्त्तमान तब उस अतीत की
कविता लिख जाता |
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जो न बही धारा अबतक बस वही बहाई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर तेरी आई है !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘
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