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हेरते पथ थके ये नयन …..

kavita
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हेरते पथ थके ये नयन !
तुम न आए हुए तिक्त क्षण !!
=
सूर्य सिर से खिसक कह रहा
आगमन की प्रतीक्षा न कर,
उग्र नदिया है चंचल बड़ी
आचमन की तितिक्षा न कर |
=
आज हित-साधना के लिए, आदमी का है होता चयन !
हेरते पथ थके ये नयन ….. !!
=
अर्क अब अस्त होने चला
आ गई साँझ की लालिमा,
फिर प्रकट कुछ क्षणों के लिए
भी हुई नक्त की कालिमा |
=
जो बिछा कुछ ही क्षण के लिए छँट गया वह घना आवरण !
हेरते पथ थके ये नयन ….. !!
=
आ क्षितिज पर उगा चाँद भी
हँस लगा छींटने चाँदनी,
और मन में दमकने लगी
सैकड़ों आस की दामिनी |
=
भावनाएँ रही थीं थकीं जो गईं करने को अब शयन !
हेरते पथ थके ये नयन ….. !!
आचार्य विजय ‘ गुंजन ‘

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