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राँगा निकला दास है

kavita
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गली – गली हर मोड़ – चौक पर होता अब उपवास है !
नेता जी के अंतर्मन का निकला यह उच्छ्वास है !!
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दबा नहीं पाते बेचारे अंदर की आवाज़ को
काट लिए कीड़े लालच के इनके तल्ख़ मिजाज़ को
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रात – दिन बस सदा चमकता आँखों में अब ताज़ है !
गली – गली हर मोड़ ……………………………………!!
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अकस्मात् उर के सागर में फिर विकास की लहर उठी
जाग गईं सारी इच्छाएँ जो थीं मन में दबी – घुटी
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अब उठ गया परायों क्या अपनों पर से विशवास है !
नेता जी के अंतर्मन का निकला यह उच्छ्वास है !!
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एक बार कर गए भूल फिर होगी अबसे चूक नहीं
था खतरे में अस्तित्व पड़ा इसलिए रह सका मूक नहीं
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मैं समझा था सोना जिसको वह रांगा निकला दास है !
नेता जी के ………………………………………………..!!
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मुद्दा तो अब रहा नहीं मुद्दे तलाशने पड़ते हैं
खुद के सही किये को ही वे पुनः बेसही कहते हैं
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कहते सही उसी को जो भी उनका उनके पास है !
नेता जी के अंतर्मन का निकला यह उच्छ्वास है !!
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लाचारी – बेवशी -हताशा ऐसी जिसका अंत नहीं
डर है कहीं कि राजनीति तज बन जाएं वे संत नहीं
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हो जाता है खेल – खेल में उनका कभी प्रवास है !
नेता जी के …………………………………………..!!
आचार्य विजय ” गुंजन ”

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