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गीत चेतना की दो कविताएँ

kavita
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एक

हो गया आज मन गीत-गीत
चन्दन से गंधित है प्रतीत !

अलसाईं कलियों ने खोले, हँसकर-
अपने दो मदिर नयन
जिनमें हो बंद रहे करते भर रात
भ्रमर के वृन्द शयन

अब सुधियों के सोपानों से चढ़
झाँक रहा मधुरिम अतीत !
हो गया आज मन गीत-गीत!!

सरि-सर-पोखर-तालाबों के
जल में हो गई शुरू हलचल
तट पर गावों की बालाएँ
हैं स्नान कर रहीं तन मल-मल

पलकों में प्रियतम की छवि को
कर बंद रहीं हैं पाल प्रीत !
हो गया आज मन गीत-गीत!!

मंदिर में घंटों के टन-टन स्वर
सुनने में आते पल-पल
हैं स्रोत भक्ति के फूट रहे
अन्तस्तल में अविरल-निर्मल

सम्पूर्ण बाह्य-अभ्यन्तर के
परिवेश हुए पावन-पुनीत!
हो गया………

दो

बहुत दिनों के बाद याद फिर
तेरी आई है !
स्मृतियों ने आकर चुपके से रची
सगाई है !!
बीते पल वक-पंक्ति सरीखे
नभ से उतर रहे
मन के वातायन से अंतस-
पट पर पसर रहे

वर्षों से सूखी घाटी फिर
अब लहराई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर
तेरी आई है !!

यादों की बारात बिना परिछन के
लौट रही
वहीं धरी की धरी अधूरी बातें
बातें जो न कही
अभी कहानी बाकी जो अबतक न
सुनाई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर
तेरी आई है !!

एकाकीपन में तेरा जब चित्र
उभर आता
वर्तमान तब उस अतीत की
कविता लिख जाता

जो न बही धारा अबतक बस
वही बहाई है !
बहुत दिनों के बाद याद फिर
तेरी आई है !!

– आचार्य विजय गुंजन

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